भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नींद में मुस्कान / राजेन्द्र देथा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शिशु सोते नहीं अर्द्धरात्रि तक
विश्राम भी नहीं करेंगे वे
थोड़ा और हँसेंगे अभी
और बताएंगे तुम्हें कि हँसना क्या होता है?
शिशु अपनी मुस्कान से याद दिलाएंगे तुम्हें
प्रेमिका के पहले स्पर्श की,
लुहार के घर नरेगा के पैसे आने के बाद
द्वार पर खड़ी मुळकती उसकी लुगाई की,
बेटी को विदा कर एकांत में बैठे माँ-बाप की।
शिशु की मुस्कान निश्चितता दर्शाती है
और बताती है कि अब सब कुछ शुभ है!
सोते हुए शिशु-
विचरणरत हैं अपने माँ-बाबा के बाएं निलयों में,
खेल रहे हैं बर्तन मांजती माँ के हृदय में
छींके में गिरते बर्तनों की थिरक पर।
शिशु सोते नहीं अर्द्धरात्रि तक
विश्राम भी नहीं करेंगे वे।
और देखिए –
नींद में सोते हुए शिशु
अचानक मुळकते हैं तो
कितने आत्मीय लगते हैं!