भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नींद में / मोहन सगोरिया
Kavita Kosh से
पिछली रात
मैंसोरहा था
मेरा देखना, सुनना, सूँघना, छूना
कुछ भी नहीं हो रहा था
पिछली रात
वो मेरी दुनिया में नहीं थे
जबकि मैं इस क़दर मौजूद
कि शायद कोई और विकल्प नहीं था उनके लिए
मैं संशय में हूँ कि कहीं वे
मुझसे ज़्यादा गहरी नींद में तो नहीं थे
मैं पूछता ही रह गया कि कौन है नींद में इस वक़्त
ठीक उसी वक़्त उन्होंने मार डाला।