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नींद रात नै आई कोन्या, गात उचाटी छाई / मुकेश यादव

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नींद रात नै आई कोन्या, गात उचाटी छाई
हे डंग-डंग पै बैरी, मान्नै सैं मन्नै हे पराई
 
गर्भ पड़ी ज्यब रोणा पड़ग्या, अल्ट्रासाउंड कराया हे
क्यूकर पीछा छूटैगा, यो घर म्हं मातम छाया हे
इस कुणबे नै मिलकै नै, मेरा नाम मिटाणा चाह्या हे-2
मात मेरी नै जिद्द लाली-2 मैं पैदा करणी चाही
 
हांसण-बोळण पै पाबंदी, के जीणे म्हं जीणा हो
बात-बात पै टोका-टाकी, घूंट सबर का पीणा हो
ऊपर तैं फेर न्यू कह दें ये, बेटी का धन हीणा हो-2
म्हारे बिना ना दुनिया चाल्लै- 2, ये नाम धरैं अणचाही
   
बलात्कार और छेड़छाड़ की, दिन-दिन घटना बढ़ती जां
जहर खा कोए आग लगा कै, भेंट दहेज की चढ़ती जां
इज्जत की खातर कितणी मारी, इसकी कोए गिणती ना-2
घर की बात सै माटी गेरो – 2, न्यू कह पंचायत बैठाई
   
सबतै ज्यादा बोझ म्हारे पै, सबतै पाछै खाणा हे
गात तोड़ कै काम करां और फिर भी मिलै उलाहणा हे
अपणी मुक्ति खातर बेबे, एक्का पड़ै बणाणा हे
कह ‘मुकेश’ या जिसी-जिसी होरी, बात उसी मन्नै गाई