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नींद / संजीव ठाकुर
Kavita Kosh से
नींद बड़ी प्यारी लगती है
ओ मेरे भाई!
फूलों की क्यारी लगती है
ओ मेरे भाई!
नींदों में सपने मिलते हैं
ओ मेरे भाई!
नींदों में अपने मिलते हैं
ओ मेरे भाई!
नींदों में किस्से मिलते हैं
ओ मेरे भाई!
टॉफी के हिस्से मिलते है
ओ मेरे भाई!
पढ़ने से छुट्टी मिलती है
ओ मेरे भाई!
लड़ने से कुट्टी मिलती है
ओ मेरे भाई!
नींद बड़ी मीठी लगती है
ओ मेरे भाई!
टूटे तो तीखी लगती है
ओ मेरे भाई!