नीकल चले दो भाई रे बन को / निमाड़ी
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नीकल चले दो भाई रे बन को
(१) अभी म्हारा आगणा म राम हो रमता,
रमताँ जोगी की लार
माता कोशल्याँ ढुढ़ण चली
अन खोज खबर नही आई रे...
बन को...
(२) आगे आगे राम चलत है,
पिछे लक्ष्मण भाई
जिनके बीच मे चले हो जानकी
अन शोभा वरनी न जाई रे...
बन को...
(३) राम बिना म्हारो रामदल सुनो,
लक्ष्मण बीना ठकूराई
सीता बीना म्हारी सुनी रसवाई
अन कुण कर चतुराई रे...
बन को...
(४) हारे श्रावण गरजे, न भादव बरसे,
पवन चले पुरवाई
कोण झाड़ निच भीजता होयगँ
राम लखन सीता माई रे...
बन को...
(५) भीतर रोवे माता कोशल्या,
बाहेर भारत भाई
राजा दशरथ ने प्राण तज्यो हैं
अन कैकई रई पछताई रे...
बन को...
(६) हारे गंगा किनारे मगन भया रे,
आसण दियो लगाई
तुलसीदास आशा रघुवर की
अन मड़ीयाँ रहि बन्दवाई रे...
बन को...