नीति सम्मिलित दोहे 2 / मुंशी रहमान खान
नहिं करियो कोई कार्य अस जासे चिंता होय।
सब कारज तोरे हाथ में समुझ बूझ करौ सोय।। 1
चिंता व्याधि कराल अति क्रम क्रम तन को खाय।
जस धनु लागै दारु महं भस्म न जान्यों जाय।। 2
नहिं भरोस तन को तनिक पल भांजत मिट जाय।
जस बुल्ला जल पर उठत छिन महं जात बिलाय।। 3
अस जिय जान न करहुँ मद भजहुँ ईश की लेख।
लेख भजे करिहै अमर यही ईश की मेख।। 4
हाड़ चाम मज्जा पशुन आवै मनुजन काम।
मानुष तन केहि काम का मरे न कौड़ी दाम।। 5
अस कुवस्तु को पाय नर नाहक करें अभिमान।
काम क्रोध मद लोभ तज क्यों न भजें भगवान।। 6
दुर्जन निंदहिं पर धरम नहिं उनके ईमान।
नहीं डरें भगवान से जिनकी अनहद बान।। 7
निंदहिं ग्रंथन को अधम लै लै सूक्षम ज्ञानं
डारें फूट अटूट जग होय धर्म की हान।। 8
जानहु दादुर सम उन्हें बसें कूप के बीच।
अगम सिंधु जानें नहीं नहिं मानें वे नीच।। 9
जो तुम्हार होवै भला निंदा किए कुकर्म।
करहुँ खुशी से तुम उन्हें ईश राखि है धर्म।। 10
अस अनीति देखहु जहाँ नहिं छुड़ियो ईमान।
करि है ईश सहाय तोहि सब विधि से रहमान।। 11