नीदरलैंड समुद्रतट / पुष्पिता
नार्थ-सी पुत्र नीदरलैंड 
ऋतु के ग्रीष्म होने पर 
सूर्य-बिंब में 
बन जाता है दर्पण 
स्वयं देखता है प्रतिबिंब 
अंतरिक्ष अपना सर्वांग। 
रेत की रेती में 
उतरता है सूरज 
बच्चों के तलवों में 
सूर्य-शक्ति भरने के लिए 
और शीश-भीतर 
अंतरिक्ष का कौतुहली ज्ञान। 
मछली की तरह 
सागर प्रिय जन मन की 
देह को सेंकता है सूर्य 
और प्रक्षालित करता है सागर 
पयोधरों को बनाता है स्वर्ण-कलश। 
वेद की ऋचाओं से 
बाहर ही सूर्य स्नान करता है 
नार्थ-सी के जल में। 
वेदों के ज्ञान से अज्ञान 
प्रकृति के नैसर्गिक प्रेमी 
पृथ्वी की शांति में 
जीते हैं आत्म-शांति। 
छूट रहे रिश्तों में 
खो रहा है अपनापन 
प्रणय अन्वेषी जन 
नई परिभाषाओं के साथ 
जन्म देना चाहते हैं नया प्रेम। 
रिश्तों से ऊबे हुए 
फिर भी 
रिश्तों के लिए प्यासे 
घर से थके हुए
रेतीले घरौंदों के खेल में 
घर को जीते हुए लोग 
नीले आकाश तले 
बुझाते हैं अपनी प्यास 
और आँखों से पीते हैं 
अछोर समुद्र की गति का छोर।
 
	
	

