भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नीम के करेले / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
पावन के उजड़े दिन
नीम के करेले
पावस के दिन
लवण लगी संध्याएँ
जूड़े-सी खुल जाएँ
हम डूबे उतराएँ
व्योम में अकेले
पावस के दिन
टूट गई सुधि-साँकल
मुक्त अंजनी बादल
झरते अनछुए उपल
अनचाहे झेले
पावस के दिन