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नीरव निशीथ / कुंतला कुमारी सावत / दिनेश कुमार माली

रचनाकार: कुंतला कुमारी सावत (1900-1938)

जन्मस्थान: जगदलपुर, बस्तर

कविता संग्रह: अंजलि(1922), उच्छवास(1924), अर्चना(1927), स्फुलिंग(1929), आह्वान(1930),प्रेम चिंतामणि(1930), ओड़ियांक कांदना (1936), गड़जात कृषक(1939), मणि-कांचन(काव्य-असंपूर्ण)(1968)


नीरव निशीथ में बज उठा क्या
एक वीणा का तार
हृदय- कंद से उछल पड़ी
गोपन-संगीत धार ?
चिर-जीवन की संचित वेदना
तपत-अश्रु-भार
बह गई क्या निमिष आकुल में
मिटाते मर्म गार ?

(2)

नीरव निशीथ में बह आया क्या ?
कुसुम सुवास राशि
मृदुल-पवन शीतल-स्पर्श से
अवसाद दुख विनाशी ?
अवश-आलस में नयन दोनो
किसने किए बंद  ?
कल्पनालोक में स्वर्ग-छबि
बढ़ाएँ हृदय में स्पंद ।


(3)

नीरव निशीथ में दूर जंगल में
किसने गाया गान  ?
सहसा धीरे से बज उठी
एक अस्फुट मधुर-तान।
सुनूँ या न सुनूँ, आकुल आवेग में
देकर अपने कान  ?
अचानक बज उठा सघन में
हृदय का तंत्रमान।

(4)

नीरव निशीथ में दूर उंची डाली पर
बैठी क्या कोयल-रानी ?
मेरे मन -की कोयल गाकर गीत
सुनाने लगी उल्लास-वाणी
सहसा बसंत का सुन्दर हृदय-देश
पर क्या हो गया आच्छादन  ?
सहसा मलय पवन ने
उठा दी मन में अद्भुत थिरकन।

(5)

नीरव निशीथ दूर आकाश में
हँस उठा क्या तारा
तैरने लगी क्या आनंदलहरी
मेरे हृदय में सारा ?
सच में, सुखदायी क्षण लगा
भव-यंत्रणा का कारा
बह पडी क्या नयन-आवेग में
नयनों से शत-धारा ?

(6)

नीरव निशीथ में सुनाई पड़ी कानों में
किसकी मधुर वाणी ?
सहसा चमककर उठा प्राण
बहा आँखों से पानी।
कौन-सी दिव्य मूर्ति देखी सपने में
अपूर्व अद्भुत अचल
पहचानने से पहले, कौनसे मंत्र से
उसने पैदा की मेरे हृदय में हलचल।

(7)

नीरव निशीथ में इसलिए हमेशा
सुनाई देती उसकी वीणा की झंकार
ललित सुंदरमोहन मधुर
पल में करती हृदय में चमत्कार
मनमोहक वह स्वर लहरी
चौदह-भुवन-भेदन
आकाश में, पवन में,वन-वन में
सुनते सारे भक्तजन ।