भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नीलकण्ठ जीवन / रमेश रंजक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कन्धों पर एकान्त अनमना
फिर सूरज की तरह डूबना
तुमने मेरे भाग्य ! लिख दिया मैंने कुछ न कहा

ठुकरा दी सब ठकुरसुहाती
पीड़ा इस हद तक पहुँचा दी
अब, केवल सूखी साँसों के कुछ भी नहीं रहा

सिमट गई परिचित सीमाएँ
फैल गई काली रेखाएँ
मन का भारी मौन, चपल निर्झर की तरह बहा

दे कर सुख-सपनों को साँकल
अमृत-सा पी लिया हलाहल
मेरे नीलकण्ठ जीवन ने हर आघात सहा
                        मैंने कुछ न कहा