भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नीलापन / साधना सिन्हा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पनीले,
भूरे बादलों से घिरा
वह नन्हा, नीला
आकाश का टुकड़ा

हरे, गहराए, झूमते
पेड़ों से आती
ठंडी फुरहरी
हवा का झोंका
देखते ही देखते
ले आये फुहार

नन्हा नीला आकाश
फैलने लगा
भूरे बादल
हुए सफेद
मिल गए फिर
नीले विस्तृत आसमाँ से

मेरे मन का
नीलापन
फैल रहा है
धीरे–धीरे
काली बदलियों को
छाँटकर