भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नीला आकाश कह सकता है / त्रिलोचन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रेम
दबे पाँव चला करता है
जाड़े का सूरज
जैसे कुहरे में छिप कर
आता है

साँसों को साध कर
नयन पथ पर
लाते हैं
आना ही पड़ता है

कुहरे में
उषा कब आई
कब चली गई
नीला आकाश
यदि कहे कह सकता है

राग उस पर
बरसा था