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नीला वर्ण सदन / रचना उनियाल
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झाँक रही अटारी से, सुकुमारी बतियाय,
पुत्र निहारे द्वार खड़ा, माता जिय लुभाय।
सुंदर कितना सदन ये, नीला वर्ण सुहाय,
वातायन का रंग भी, धरती गगन लजाय।
चिंतारहित प्रसू कहे, रखना सदा ध्यान,
भाई बहन जीवन में, करें मान सम्मान।
बाला ख़ुश होकर कहे, सच महतारी बात
कनिष्ठ अनुज संग रहे, ख़ुशियों की सौग़ात।
कितना श्रेष्ठ आलय ये, उत्कर्ष हैं विचार,
बच्चे समझें बात तो, स्वर्ग बने घर द्वार।
पारवारिक मूल्यों को, रखें बाँध के गाँठ,
उत्तम समाज ही बने, ना हो कोई साँठ।
भारती संस्कार कहे, हो ऐसा व्यहवार,
प्रेम ह्रदय में ही बसे, रिश्तों की बलिहार।