नीली आँखों वाला दैत्य / नाज़िम हिक़मत / अनिल जनविजय
एक था दैत्य नीली आँखों वाला
जो प्यार करता था एक छोटे क़द की औरत को
और वह देखा करती थी सपनों में हर वक़्त
एक छोटा सा घर ... जहाँ खिड़की की सिल पर
खिले हुए मधुझाड़ के फूल
दैत्य प्यार करता था दैत्यों की तरह
छोटे-बड़े काम सब करता था हाथों से
पर बना नहीं पाया वह उसके लिए
नन्हा सा गुम्बददार एक मकान ... जहाँ खिड़की की सिल पर
खिला हुआ हो मधुझाड़
था एक दैत्य नीली आँखों वाला
प्यार करता था वह एक छोटे क़द की औरत को
और वह थक चुकी थी उसके साथ-साथ चलते
दैत्यों के रास्ते पर ... आराम करना चाहती थी वह
किसी बगीचेदार आरामदेह घर में
— विदा ! विदा ! उसने कहा नीली आँखों से ।
और फिर उसे ले गया एक बौना
एक छोटे से घर में ... जहाँ खिड़की की सिल पर
खिलते हैं मधुझाड़
दैत्य को मालूम है अब
कि उसका प्यार
छुपेगा नहीं किसी छोटे से घर में
खिड़की की सिल पर
जहाँ खिले हों मधुझाड़
1935
रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय