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नीली रोशनी का अंधकार / विनोद शर्मा
Kavita Kosh से
अपने से परे धकेलते हैं एक दूसरे को,
चुम्बक के समान धु्रव
और विपरीत धु्रव एक दूसरे को
खींचते हैं अपनी ओर
जैसे चुम्बक और लोहे के टुकड़े
जैसे पुरुष और स्त्री
आदमी और औरत का परस्पर आकर्षण
देह से देह का, मन से मन का और
आत्मा से आत्मा का
कीाी न खत्म होने वाला संवाद है
विध्वंस के बियाबान में निर्माण की पुकार है
सृजन का आह्लाद है।
मगर, पुरुष की देह में,पुरुष की
और स्त्री की देह में, स्त्री की आसक्ति
अपवादों का अपवाद है
समान धु्रवों का यह आकर्षण
विकृत वासना की नीली रोशनी का अंधकार है
कुदरत का भद्दा मजाक है, अश्लील खेल है
देह का उन्माद है
मन की भाषा से देह की भाषा में
प्रेम-कविता का,
अनाड़ी अनुवादक के द्वारा किया गया
अटपटा अनुवाद है।