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नील नभ में यह किसका जीवन है / रामकुमार वर्मा

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नील नभ में यह किसका जीवन है!
वायु की इच्छा के अनुकूल
बिगड़ता बनता जिसका लघुतन है॥
चन्द्र रवि की किरणों की धार
बेधती कोमल तन सुकुमार,
कभी पावस-तम नभ में दौड़
तड़प कर करता तड़ित प्रहार।
अपरिचित दिशा, अपरिचित निशा
अपरिचित नभ का यह निर्जन वन है॥
कहीं बादल का ले आकार
उड़ा हो मेरा जीवन भार!
हॄदय को बेध, साँस की वायु
चलाती इच्छा के अनुसार,
विकलता की विद्युत ही मुझे
अपरिचित छबि का नव आवाहन है॥