भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नूनू केॅ दादी सें / कस्तूरी झा 'कोकिल'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

की कहियै नूनू केॅ बोलेॅ
कुछ नैं बुझै छै
केनाँ केॅ समझैए ओकरा?
कुछ नैं सूझै छै।
ऐन्हों-ऐन्हों प्रश्न करै छै,
हल करना मुश्किल।
ऐन्हों-ऐन्हों तर्क करै छै,
समझना मुश्किल।
भगवान घोॅर में काम बहुत छै
केनाँकॅे अयतै दादीं?
जब छुट्टी देथिन भगवान जी।
तभिये अयतौ दादी
ई सूनी के गुमगाम होय केॅ
मम्मी लग भागै छै।
जखनीं-जखनीं याद पड़ै छै,
हमरा लग आबै छै।
केनाँ कहियै दादी तोरोॅ
अब नैं कहियों अयतौ।
कोय नैं आबै छै लौटी केॅ
दादी केनाँ अयतौ?
तोहीं बोलोॅ की करियै जी?
नूनू केॅ की कहियै?
झूठ फूस बोली-बोली केॅ
कत्तेॅ दिन बठैइऐ?

03/07/15 दोपहर 2.45