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नूपुर बँधे चरण संध्या के नूपुर बँधे चरण / गुलाब खंडेलवाल
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नूपुर बँधे चरण संध्या के नूपुर बँधे चरण
सागर की लहरों पर थिरक-थिरककर
नाच रही है किरण-बालिका थर-थर
पिछल रहीं जल पर चंचल पगतलियाँ
मुक्त पवन में उड़ता अंचल फरफर
श्याम अलक, पलकें मद-लोहित, मुख छवि पीत-वरण
ले तारों के स्वर्णिम प्याले कर में
बाँट रही वह दूर-दूर अंबर में
लो खाली हो गया लुढ़ककर मधु-घट
फैली अरुण वारुणी शून्य डगर में
फिरते चारों ओर मधुप-पक्षी ढूँढ़ते शरण
टिकीं सदा यौवन-रँगरलियाँ किनकी!
याद शेष है अब केवल उस दिन की
सिसक रही तम-गुहा, धरा-अंचल में
कभी व्योम पर नाची प्रभुता जिनकी
दशों दिशाओं में निर्भय तम-शिशु करते विचरण
नूपुर बँधे चरण संध्या के नूपुर बँधे चरण