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नृतत्व संग्रहालय में / अज्ञेय
Kavita Kosh से
तब-
इतिहास नहीं था जब-
जिन की ये हड्डियाँ हैं
वे जीवित थे।
जो आज हैं
सिकुड़े जर्जर कंकाल,
रीढ़, भुजा, कूल्हे, कपाल-
मगर आह, यह एक पंजे में अटका
उजले धातु का छल्ला!
पुरातत्त्व? तत्त्व यह
कि धूल है सब-
क्या वह, क्या हम
सभी कुछ है सम-
अब भी नहीं है इतिहास,
केवल क्रम, विक्रमन-
मगर वह-वह पुराने खरे धातु की चमक
और यह-यह भीतर की खरी सनातन
सुलगन!