नेता / श्यामनन्दन किशोर
आइए!
आप हैं नेताजी?
कलियुग में
द्वापर-त्रेताजी?
आइए!!
आपका ही था
कब से
इन्तजार।
स्वागत में
कब से खड़ी-खड़ी
कुछ सोच रही
यह लाख-लाख
दर्शन-पिपासुओं की
कतार!
आइए!!!
आए हैं
सिर के बल चल?
करुणा-निधान!
या देख
भक्त की कोमलता,
हैं पलक-पाँवड़े बिछा
राह जो देख रहे?
चाहे जैसे भी आये हों;
बैठिए जरा!
हम समझ रहे हैं
आप बहुत हैं
श्रान्त-क्लान्त?
आपका भला
परिचय क्या दूँ?
मैं एक अनाड़ी हूँ ऐसा,
अब तक न समझ पाया,
हैं आखिर कौन आप?
नेताजी? -यह तो
खाया-खेला और बढ़ा
साथ ही,
लेकिन क्या
यह जान सका-
हैं किस विचार के आप?
‘वाद’ वह कैसा है?
(आइए कान में धीरे से
कुछ तो कहिए तो)
ओ,
समझ गया, हैं आप
मुक्त इन वादों से!
वादों का व्यर्थ विवाद
हृदय भरमाता है!
खाते हैं केवल आम,
न गिनते पेड़ों को;
इस मीन-मेष से
क्या कुछ
हो जाता है!
अवसरवादी सब लोग कहें
पर इससे क्या?
मैं नहीं कभी
चकमे में आ सकता
इनके!
ये लोग बड़े ईर्ष्यालु,
भुलावा देते हैं!
नेताजी हैं आदर्श!
आइए,
स्वागत है!
(परिचय इतना ही दे देता
इन मूढ़ों को!)
तुम उचक-उचक
क्या देख रहे?
क्यों उत्सुक हो?
हो शान्त!
बैठकर सुनो
मधुर इनकी शिक्षा
इनका भाषण!
हैं वीर्यवान्!
बहलाते मन
करके शिकार!
हैं दयावान्!
करते हैं हरदम
फलाहार!
है साम्यवाद का बना
हृदय!
रखते समाजवादी
विचार!
ये नहीं पाप से
हैं परिचित!
ये नहीं पुण्य के
हैं आदी!
आओ! पहचानो!
युग के नये
मसीहा को
जो सूरत कपड़ों से
कट्टर
गाँधीवादी!
(10.5.51)