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नेतुला के पास बिषहरी का जाना / बिहुला कथा / अंगिका लोकगाथा

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होरे करले पयान हे माता मिरतु तो भुवन हे।
होरे मन कैले तुलसा हे माता पान कैले पवन हे॥
होरे जाये तो जुमली हे माता नेतुला आवास हे।
होरे दूसरे देखले गे नेतुला देवी चलली आवे हे॥
होरे सिंहासन पाट गे नेतुला गंगाजल भरले गे।
होरे सोबरन के झाड़ीगे नेतुला गंगाजल भरले गे॥
होरे कंचन के थार गे नेतुला गैवेद्य धरले गे।
होरे करजोरि आवेगे नेतुला ठाढ़ी भय गेली गे॥
होरे आहो-आहो आवे हे माता सिंहासन बैठे हे।
होरे पैर धोलाय गे नेतुला भगेली तैयार रे॥
होरे नैवेद के थारी के नेतुला आगू धरि देल गे।
होरे बोले तो लगली गे नेतुला देवी से जवाब रे॥
होरे कौन तो कारण हे माता पांचो ते बहिनी अएलो हे।
होरे सेहो तो वचन हे माता कहो समुझाय हे॥
होरे एतना सुनिये हे माता मैना बिषहरी हे।