नेत्र-वर्णन / श्रृंगारहार / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
निशा नीलिमा नयनमे दिवस उज्ज्वले अंश
साँझ-परातक लालिमा दृग - क्षितिजक अवतंस।।5।।
अभियंता - अभियंता कंदर्प ई भृकुटिक बंध बनाय
नयन योजनासँ तरल विद्युत देल जगाय।।6।।
व्यतिक्रम - दृग युग कीदृग मृग युगल चंचल चौंकि चलैछ
रसिक केसरी पर करय उनटे चोट अड़ैत।।7।।
वैचित्र्य - विधिक सृष्टिमे नील नभ तारा उज्ज्वल रूप
रमणि दृष्टिमे नभ विमल तारा असित सरूप!!8।।
दृग-गयंद - वयस मदेँ मातल मदिर दृग-युग मत्त गयद
तोड़ि लाज साँकड़ चलल मदन गहन स्वच्छंद।।9।।
भृकुटि धनु - मृग दृग चचल दृ्रत-गतिक दौड़ि रहल श्रुति-कुंज
कुटिल भृकुटि धनु तनल पुनि हनल जाय युव-पुंज।।10।।
कंठ-हार - रमणि कठ सँ लटकि उर हीरक झुलैछ
कब दुग्ध धारा धवल गज मुख उपर चढ़ैछ।।11।।
उर-कंचुकी - नील कचुकी कसि उरस पहिरलि मुक्ता-दाम
मेरु-शिखर पर तारकित उतरलि यामिनि श्याम।।12।।
उर-नितम्ब - चन्द्रहार उडु मनि खचित उर अंबरे खगोल
ग्लोबे थीक नितम्ब ई पूर्व - पश्चिमी गोल।।13।।
तटस्थ राज्य - उपनिवेश वादी उभय नृप नितम्ब वक्षोज
‘बफर’ राज राजित उदर कटि तटस्थ कृश-ओज।।14।।
सीमा रेखा - तनल उरज राजा, बढ़ल रिपु नितम्ब खीमाक
विधि सन्धिक हित देल खिचि कटि रेखा सीमाक।।15।।
कटि - कटि तट शोभा कूट छल काटि काटि निधि चारु
उर नितम्ब परिपुष्टि - हित सठा देल विधि कारु।।16।।
जघन - स्फटिक स्वच्छ मृदु मसृणतम कदली गर्भ प्रमान
करि कर अनुलंबित जघन एकत सभ उपमान।।17।।
त्रिवली - तीनि चरण चलि त्रिविक्रम जीतल वलि छलि लेख
त्रिवलि जीति त्रिघली बलित एक एक बलि - रेख।।18।।
श्रोणीरथ - सघन जघन मनहुक अगम मदन-सदन अति दूर
रति पथ अतिवाहित करिअ श्रोणी रथ समतूल।।19।।
पद - कनक वेलि धनि, पल्लवे पद, सभ सहज प्रसंग
उपर भ्रमर नख समुचिते अनुचित उज्ज्वल रंग।।20।।