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नेयार / जयराम सिंह
Kavita Kosh से
माघ महीना हमर साजन के घर से,
अचके नेअरिया आ गेलै।
(1)
इहे हमर हल जनम के घरवा,
जहाँ आज तक मिलल दुलरवा,
माय-बाप, भाई-बहना के,
छोड़ के जाही करम दुअरवा।
चलै के बेरिया आ गेलै।
(2)
केकरा से अब करम ठिठोलिया,
छूट रहल सब संगी सहेलिया,
रह-रह टीस उठे मनवा में,
खतम भेल सब नैहर के खेलिया।
दुख के डगरिया आ गेलै।
माघ महीना...
(3)
आँख के लोर से करऽ हियो विनती,
छमा करिहऽ हमर जे भेल गलती,
पता नै फिर कब लौटम घरवा
डरवा से बंदहे हमर बोलती।
ललकी सवरिया आ गेलै।
माघ महीना...