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नेह-बँधी यह देह हमारी / कुमार रवींद्र

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अद्भुत, सजनी
नेह-बँधी यह देह हमारी
 
रग-रग में हैं
राग अलौकिक इसने साधे
सहज प्रीत के देवा ही
इसने अवराधे
 
चिर-सुहागिनी
बनी रही यह देह हमारी
 
इसी देह से हमने जाना
सुख क्या होता
भीतर छिपकर कौन
नेह के मंत्र सँजोता
 
ठगती भी
इच्छाएँ-पगी यह देह हमारी
 
कोंपल बनकर
ऋतुएँ जीती देह कुँवारी
जब बनती यह फूल
मिठातीं साँसें सारी
 
देवों ने ही
है सिरजी यह देह हमारी