भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नेह के पथ पर / शिवम खेरवार
Kavita Kosh से
नेह के पथ पर अकेले क्यों खड़े हो?
कर समर्पित नेह पर सर्वस्व अपना,
पूर्ण कर लें हम प्रिये प्रत्येक सपना,
मिल बढ़ें कठिनाइयों के द्वार भीतर,
तुम अकेले इस जगत से क्यों लड़े हो?
नेह के पथ पर...
क्यों न मिलकर एक होना चाहते हो,
लग रहा मुझको न खोना चाहते हो,
प्रेम का अनुबंध करके देख भी लो,
तुम निरर्थक ही हठों पर क्यों अड़े हो?
नेह के पथ पर...
रच रहे हो प्रश्न हिय के नेह जल से,
प्रश्न का उत्तर मिलेगा किंतु हल से,
डग बढ़ाकर बढ़ चलो इसकी डगर पर,
पाँव को पथ में प्रिये तुम क्यों जड़े हो?
नेह के पथ पर...