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नेह छलकता नैनन से ज्यों सुरभित सावन हो गया / रुचि चतुर्वेदी

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मिला तुम्हारा परस देह का आंगन पावन हो गया,
नेह छलकता नैनन से ज्यों सुरभित सावन हो गया।

पायल की झंकार झननझन और छमाछम बिछुवे की,
गेरू से महके आंगन में सजते तुलसी बिरवे की।
शोभा सुन्दर हो जाती मन भी मनभावन हो गया।

नेह छलकते...॥
खनखन चूड़ी की बजती है तुम्हें सुनाने को सजना,
चमके बिन्दिया माथे पर मन प्रीत सजाने को सजना,

प्रीत सुहानी रीत पुरानी भाव सुहावन हो गया।
नेह ...॥

जीवन में मधुमास तुम्हीं से रंग तुम्हारे सजते हैं,
अधरों पर मुस्कान बने वे शब्द सुरों में बजते हैं।

मन की देहरी सजी हृदय का सज्जित आँगन हो गया।
नेह...॥