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नेह लगा के सलौने सजन कित जैहो / करील जी

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लोक धुन। ताल-स्थायी दादरा

नेह लगा के सलौने सजन कित जैहो॥धु्रव॥
लागी प्रीति अब कैसे छूटे,
अब न पिया बिछड़ैहो। सजन.॥1॥
तजि मिथिला, जल बिनु मीनहिं जिमि,
जनि जीवन तरसैहो। सजन.॥2॥
सिय सिय अलि सँग रुचिर केलि बहु,
कहु किंमि ललन भुलैहो। सजन.॥3॥
कोहबर हास-विलास सोहावन,
असि ससुरारी न पैहो। सजन.॥4॥
नित नव ब्याह रचैहो स्यामघन,
अगहन सावन बनैहो। सजन.॥5॥
पुनि पुनि विनबऊँ अब ‘करील’ पहु,
मिथिलाहिं अवध बसैहो। सजन.॥6॥