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नेह / विजेन्द्र
Kavita Kosh से
देख रहा मैं
तुमको भाया
बदली-बदली लगती काया
दिखने में तो
लगते देसी
चाल बिलायती
कैसी माया
सुना जगत में बहुत बडे़ हो
छूकर देखा
सेब सडे़ हो।
कैसी नीत बघारो भाया
बडे़ सबद
मन छोटा पाया।
आता है-
आने दो पक कर
वो बैठा है इस खन
थक कर
क्यों वो समझे बात हमारी
जो है खूब अघया भाया।
मान वही बिन माँगे आया
दुख ने खूब छकाया भाया
नेह ने
खुब गवाया भाया।
2002