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नैननि के आगे नित नाचत गुपाल रहैं / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

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नैननि के आगै नित नाचत गुपाल रहैं,
ख्याल रहै सोई जो अनन्य-रसवारे हैं ।
कहै रतनाकर सो भावना भरीयै रहै,
जाके चाव भाव रचैं उर मैं अखारे हैं ॥
ब्रह्म हूँ भए पै नारि ऐसियै बनी जौ रहैं,
तौ तौ सहै सीस सबै बैन जो तिहारे हैं ।
यह अभिमान तौ गवैहैं ना गये हूँ प्रान,
हम उनकी हैं वह प्रीतम हमारे हैं ॥59॥