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नैननि के नीर और उसीर सौ पुलकावलि / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
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नैननि के नीर औ उसीर सौ पुलकावलि
जाहि करि सीरौ सीरी बातहिं विलासैं हम ।
कहै रतनाकर तपाई बिरहातप की
आवन न देति जामैं बिषम उसासैं हम ॥
सोई मन-मन्दिर तपावन के काज आज
रावरे कहे तैं ब्रह्म-ज्योति लै प्रकासें हम ।
नन्द के कुमार सुकुमार कौं बसाइ यामैं
ऊधौ अब लाइ कै बिसास उदबासैं हम ॥56॥