भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नैनन साभरिया लग रैहै / ईसुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नैनन साभरिया लग रैहै।
जो तै जमुनै, जै हैं।
जिनकौं राज जिनहूँ की रइयत,
उनकी कीसौं के है।
चाहत है जो अपने कुल की,
बाहर पाँव न दैहैं।
‘ईसुर’ स्याम मिलैं कुंजन में,
मन माई कर लै हैं।