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नैन तुम्हारे विनय पत्रिका / राघव शुक्ल
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नैन तुम्हारे विनय पत्रिका
इनकी चितवन इंद्रधनुष सी
जैसे धूप छिपी बादल में
जब पलकें झुकतीं लगता है
फूल गिराज़ हो गंगाजल में
इन नैनों के दर्शन पाने
राघव पहुंचे पुष्प वाटिका
इन नैनों के लिए प्रेमवश
कान्हा भटके गली गली को
जब जब इनमें काजल आंजा
कान्हा भूल गए मुरली को
इन नैनों के लिए सजी है
वृंदावन की कुंज वीथिका
इन नैनों पर कालिदास ने
शाकुंतल के श्लोक कहे थे
फिर कुमारसंभव रच डाला
भीतर भीतर बहक रहे थे
और अंत में पावन होकर
रघुवंशम की लिखी भूमिका
ये नैना वृषभानु लली के
ये नैना हैं शकुंतला के
ये नैना उर्मिला सती के
ये नैना हैं यशोधरा के
इन नैनों में एक विरहणी
जिसके सपने हुए मृत्तिका