भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नै भेटतौं मौका हो / ब्रह्मदेव कुमार
Kavita Kosh से
पढ़ी लेॅ-पढ़ी लेॅ काका हो, फेरु नै भेटतौं मौका हो।
फेरु नै भेटतौं मौका हो काका, फेरु नै भेटतौं मौका हो।
बेटा तोरोॅ परदेश खटै छौं, रूपया-पैसा भेजथैं रहै छों।
दसखत कराय लेॅ खुशामद करै छौं, करै छोॅ आगू-पीछू हो।
जैभोॅ ब्लौक कोनोॅ काम जे होथौं
बिन दसखत के बातोॅ नै सुनथौं।
सतरह गोटा के खुशामद करभोॅ, देतौं सभ्भैं तोरा धोखा हो।
पढ़लोॅ-लिखलोॅ के जमाना ऐलै, बिन पढ़लेॅ कोय कामोॅ नै भेलै।
रसीद काटी केॅ देथौं करमचारी, लै लेथौं बेसी टाका हो।
ऐथौं चिट्ठी तेॅ आपनै पढ़िहोॅ, आपन्है लिखी-लिखी भेजबोॅ करिहोॅ।
हँसलोॅ तों जैहोॅ डाकघर काका, छोड़ाय लिहोॅ पैसा-टाका हो।
घर-घर में स्कूल चलै छै, गाम्हैं के पढ़ुआं पढ़ैबोॅ करै छै।
तनिक समय में बहुते पढ़ैतों, लेथौं नै पैसा-टाका हो।