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नोटिस या वारंट न आया / नईम
Kavita Kosh से
नोटिस या वारंट न आया,
आज न आया कोई सम्मन।
इससे बेहतर दिन क्या होगा,
पटियाला हो या फिर मोगा।
लगता आज प्रसन्नचित है,
बंधु! देवता अपना गोगा।
आए नहीं द्वार पर मेरे
अलस्सुबह से शेख़ो बिरहमिन।
दैनिक पेपर पढ़ा न कोई,
उफनी नहीं चढ़ी बटलोई,
आए नहीं पीठ पीछे की
कथा सुनाने लल्लन भोई,
ठाकुर कभी हो लिया मनुवाँ,
कभी हुआवो सैयद फुन्नन।
मन अतीत में धँसा न गहरे,
वर्तमान के याद ककहरे,
काल लील लेगा धीमे से
अगर कहीं पर हम-तुम ठहरे,
औरों की दे सकूँ ज़मानत-
हो लूँ मैं खुद का भी ज़ामिन।
पेश न हुए किसी कोरट में
और किसी के हुए न ज़ामिन।