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नोतक प्रेमी / कालीकान्त झा ‘बूच’

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धैन हमर छी कक्का औ
‘‘नोतक प्रेमी‘‘ पक्का औ
पेट बांगला देशक पोखरि
दाँते बान्ह फरक्का औ

 भरलो तौला लेल सुरूक्का
धोधि बनल तरभुजिआ फुक्का
काकी बाजथि रौ रोगढुक्का
बाबी मारथि छाती मुक्का
कसमकस्स गंजी परपड़लै बित्ता भऽरि दरक्का औ ..
 
भरि कठौत एकसरे चाही
सद्यः हुरने अछि दू- गाही
सून कऽ रहल भऽरल भनसा
हा! भगवान कतऽ ई मनसा
 उसनल अल्हुआ खाइत काल ईं छोडा दैत अछि छक्का औ...
 
चिबबऽ काल सोहारी सुक्खा
ठोर बनल सकरीक दुरुक्खा
पाकल दू किलो धरि आटा,
बट्टा भरि तरकारी भाटा
 सभटा खाकऽ परसन लय मॅुहबेने अछि दू फक्खा औ...
 
एहि परेत केॅ कहू ने पित्ती
ई शमसान घाट केर लुत्ती
सतत् रहै अछि दाँत चियाड़ल
मुँह लगैए कनसारल भारल
सुनिते लोट-पोट हँसि- हँसि कऽ खसला ‘बूच‘ तरक्का औ ।

काकी केर फरमान निकललनि
कक्का जी जजिमनिका चललनि
आगाॅ लऽ अंगोक अॅधमोनी
अगवे मोटा- चोटा तौनी
ठिकम ठिक दुपहरिया ठहठह जेठक रौद कड़क्का औ...

सुनह बूच तारू सूखल अछि
प्राण कंठगत पानि पियाबह
भरि दिनुका भूखल प्यासल छी
मरि रहलहुँ गंगाजल लाबह
लहलहाइत काकी जुमली ल' बाढ़नि सूप तरक़्का औ...