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नौका / सर्जिओ इन्फेंते / रति सक्सेना
Kavita Kosh से
यात्रा में
दिखती हो तुम,
नहीं सुनाई देती तुम्हारी आवाज।
गलही-विनिवेशित
विषुवतीय वायु
कर लेती है अधिकार
और बहती रहती है निरंतर।
हमेशा अथक रहने वाली
सामुद्रिक चिड़ियाएँ हैं,
फासले नापने को
जमीन नहीं है चारों ओर।
सिर्फ एक समुद्र है
और चमचमाते चाकुओं सी
उड़ती मछलियाँ।
सिर्फ एक समुद्र है
और हर रोमरंध्र में
अंगारे दहकाता
सूर्य का लंगर।
सिर्फ एक समुद्र है,
फासले नापने को
जमीन नहीं है चारों ओर।
बस एक समुद्र है,
हर ज्वार में उभरती
घर की प्रतिच्छवि
और एक घनीभूत पीड़ा।
फासले नापने को
जमीन नहीं है चारों ओर।
महज एक समुद्र
चारों ओर नहीं है
दूरियाँ जतलाता
कोई भी भू-खंड।