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नौमोॅ सर्ग / अंगेश कर्ण / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

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हल्का-हल्का किरिन सूर्य रोॅ
कल्हेॅ-कल्हेॅ उतरै छेलै,
तभियो झुरमुट गाछी तर में
रात अन्हरिया चौपड़ खेलै।

ओकरौ सें कुछ जादा घन्नोॅ
मन पर कर्णे के छैलोॅ छै,
जानी चुकलोॅ छै सब रं सें
भाग्य नियति के मन मैलोॅ छै।

तभियो की मृत्यु रोॅ डर सें
कोण्टा में जीवन कानै छै?
समय रहेॅ या गति सागर के
बढ़बे तेॅ बस यैं जानै छै।

ई सोची-राधेय छड़पलै
आरो रथ पर खाड़ोॅ भेलै,
एक धनुष पर सौ वाणोॅ सें
पाण्डव दल केॅ पीछू ठेलै।

वाणोॅ के बरसा सें कर्णें
महारथी कॅ छेदेॅ लागलै,
तीन वाण कृष्णोॅ केॅ मारै
तेॅ तेरह अर्जुन पेॅ सधलै।

ई देखी बोलै अर्जुन सें
कृष्ण बड़ी चिन्तित भावोॅ सें-
”देखोॅ की रं पाण्डव सेना
व्याकुल तीरोॅ के घावोॅ सें।“

”जखनी जेकरा सें चाहै छै
अस्त्र उठाय केॅ मारै कर्णें,
ई तेॅ खाड़ोॅ छौं काले रं
पाण्डव-दल के ठोठोॅ धरनें।“

”बची-बची कॅे चलनै ही छै
अर्जुन नै ओकताबोॅ तोहों,
तोरे पर तनलोॅ होलोॅ छै
ई कर्णोंॅ के टेढ़ोॅ भोंहों।“

”देखै नै छोॅ, की रं साधी
सौ-सौ वाण चलाबै हेनोॅ,
केकरोॅ मूड़ी, केकरोॅ बाँही
कटी गिरै छै दोनों ठेनोॅ।“

”बिलबिल करलेॅ की रं भागै
महारथी तक हमरोॅ देखौ,
अर्जुन तोहें उमताबोॅ नै
ई खतरा रोॅ घंटी चेखोॅ।“

”जे बोलियौं, होनै केॅ करियौ
विचलित हुवोॅ नै जरियो इखनी,
प्राण हरी लीयोॅ कर्णोॅ के
संकट में होतै ऊ जखनी।“

”नै तेॅ मुश्किल छौं ई रण में
माँत केन्हौं केॅ ओकरा देवौ,
कर्णोॅ केॅ छोड़ी केॅ आरो
जेकरा पाबौ-बींधोॅ-छेवोॅ।“

”मजकि बची-बची केॅ रहियोॅ
महाकाल ई कर्ण बली सें,
कोय सहजे नै जीतेॅ पारेॅ
धरती पर ई धर्मव्रती सें।“

”खाली नै ई महाबली ही
दानी नै कोय्यो एकरोॅ रं,
पुण्योॅ केॅ अर्जित करनें छै
तपियो कुछुवे टा जेकरोॅ रं।“

”तप के तेज, सूर्य के आगिन
कर्णोॅ के रोआं-रोआं में,
की हौ क्रोध दिखाबै नै छौं
ओकरोॅ जे आँखी-भांेहाँ में?“

”अर्जुन, कर्णे जे पैलेॅ छै
दंश बहुत्ते झेलीन्झेली,
आय सरंग पर खाड़ोॅ छै तेॅ
पर्वत-सागर सात धकेली।“

”तप तेॅ तोरो कम नै अर्जुन
मजकि ओकरोॅ बात अलग छै,
सबसें छलतें रहलौ पर ऊ
सोनोॅ पर हीरा के नग छै।“

”बीच सरंग में भरी दोपहर
सूर्यपुत्र हौ सूर्ये छेकै,
वही जरी केॅ खाक हुवै छै
जेकरा जरियो टा भी देखै।“

”खाली जाबेॅ दौ कर्णोॅ के
सर्पमुखी वाणोॅ केॅ अर्जुन,
ज्ञान कहाँ छौं तोरा सबटा
की ओकरोॅ ऊ वाणोॅ में गुण।“

तभिये छुटलै वही वाण ठो
कृष्ण-बुद्धि सें अर्जुन बचलै,
कुछ अंगुल नीचें रथ कैलकै
कुछ अंगुल रथ नीचें धँसलै।

गली-गली केॅ स्वर्ण मुकुट ठो
पसरी गेलै पानी हेनोॅ,
हुन्ने कर्ण विकल पर मुस्कै
कृष्ण काल के ज्ञानी हेनोॅ।

फेनू मन-मन कृष्ण कहलकै-
”कर्ण होना तेॅ तों सूर्ये ही,
देह-धरम सें तखनी बंधलौ
जखनी धरलौ तोहें देही।“

”ऋषि मुनि या देव रहेॅ ऊ
केकरोॅ देह रहै छै कायम,
हुड़का लाख लगाय केॅ राखेॅ
ढुकिये आबै छै घर में यम।“

”कोय-न-कोय बहाना सें ही
देहोॅ केॅ छोड़ै लेॅ लागै,
ई अटूट गति नियम धरा रोॅ
काल धरै, कोय कत्तो भागै।“

”यै सें छुटकारा छै मुश्किल
सबके ई गत पुरनै ही छै,
कोय पहिलें, कोय बाद जरा सें
काल समय पर सबकेॅ बीछै।“

”वहेॅ नियम सें तोरौ आबेॅ
मरना छौं तोरौ हे धर्मी,
पुण्य प्रतापी, दानी, आंगी
भरम मिटावोॅ। गेलौं भरमी।“

”तोरोॅ रं नै वीर भुवन पर
हमरोॅ रथ केॅ जे ठेली देॅ,
जेकरोॅ रक्षक स्वयं पवन-सुत
सब रण-व्यूहोॅ केॅ हेली देॅ।“

”यही कथा तोरोॅ जय होतौं
अमर कथा कर्णोॅ के होतै,
रिझतै ज्ञानी, ऋषि, सुधी जन
दुष्ट जलन, बुद्धि बस रोतै।“

”ज्ञानोॅ के पाखण्डी केॅ नै
तोरोॅ कथा सुहैतौं कभियो,
जेकरोॅ लेली वंश बड़ोॅ छै
जे तोरोॅ सम्मुख नै जरियो।“

एक क्षणोॅ लेॅ समय ठहरलै
रुकलै जे भी जहाँ जना केॅ,
चुप्पी रण में फैली गेलै
औचकही ई अजब केना केॅ।

कर्णोॅ के काने में गुंजलै
”कर्ण, निकट देहान्त सुनी ला
आबेॅ तोरोॅ आयुध बेरथ
रक्खी दौ सब, हाथ मुनी ला।“

”बोलोॅ, ई अन्तिम बेला में
अर्जुन छोड़ी, की किंछा छौं,
पूरा होतै-वचन दै छियौं
ऊ जे तोरोॅ मनबिच्छा छौं।“

”जों एतनै हमरा पर खुश छौ
तेॅ हमरा तों एक वचन दा,
अन्त्येष्टि तोरे ही हाथें
अगर रहौं नै हम्में जिन्दा।“

”सूर्यपुत्र हम्में तन धारी
हमरोॅ वंश पिता के छेकै,
माता कुन्ती चंद्र कुलोॅ के
बारी-बारी सें हमरा देखै।“

”सूर्य कुलोॅ के, चन्द्र कुलोॅ के
हम्में सेतु, हम्में साखी,
लड़तें ही अब तक ऐलोॅ छी
दोनों कुल मर्यादा राखी।“

”देखी ही चुकलोॅ छौ तोहें
पाण्डव चारो छोड़ी देलौं,
एकेक करी केॅ धरी-धरी केॅ
माय केॅ देलोॅ वचन निभैलौं।“

”ऊ माता के, जौनें हमरा
नवो मास तक कोखी राखी,
डर सें गंगा केॅ दै ऐलै
पिता सरंग पर एकरोॅ साखी।“

”माय केॅ कैन्हें दोख दिखाबौं
ई तेॅ डोॅर समाजे केरोॅ
जे कि जोॅर-जनानी पर ही
घुरी-फिरी केॅ डालै फेरोॅ।“

”जखनी धरियै नकुल, भीम केॅ
माय के मुँह ठो नाँची आबै,
अपने आप हटी जाय आयुध
यही वचन सहदेव बचाबै।“

”नै तेॅ युधिष्ठिर ही की होनोॅ
पाण्डव-सेना बीच मिलतियै,
चारो भाय केॅ अन्ने नाँखी
हमरोॅ आयुध-काल गिलतियै।“

”माय केॅ देलोॅ वचन-धर्म सें
जरो बढ़ी नै, जीत-विजय ई,
छोड़ी देलियै हँसतें-हँसतें
पकड़ी केॅ कै दाफी जाय ई।“

”लेकिन दुर्योधन केॅ देलोॅ
वचन केना केॅ भूलेॅ पारौं,
परशुराम के देलोॅ धनुष केॅ
वचन निभाबै लेॅ ही धारौं।“

”है नै समझोॅ नै जानै छी
के छेकौ तोहें तनधारी,
विदुर-शल्य सें ज्यादा जानौं
अर्जुन केकरोॅ बल पर भारी।“

”जतना छौं विश्वास तोरा पर
अर्जुन केॅ डेगोॅ-डेगोॅ पर,
ओकरौ सें बढ़िये केॅ ज्यादा
दुर्योधन केॅ हमरोॅ ऊपर।“

”ऊ विश्वास नै तोड़ेॅ पारौं
आगू कोॅन कथा की रहतै,
अर्जुन केॅ नै छोड़ेॅ पारौं
आय लहू केकरो तेॅ बहतै।“

”जों हमरे ही लहू बहै छै
लड़तें हमरै प्राण उड़ै छै,
जलेॅ चिता वैठां ही हमरोॅ
जहाँ लाश नै कोय चढ़ै छै।“

”लेकिन इखनी ई की सोचौं
इखनी प्राणोॅ पर प्रण चढ़लोॅ,
ध्यान कहीं नै अभी गड़ै छै
अर्जुन पर ही छै बस गड़लोॅ।“

”की नै सहलौं बात भीष्म के
आरो की नै शल्ये केरोॅ,
मिली-जुली केॅ गाली देलकै
अलगो-अलगो, बान्ही जेरोॅ।“

”ऊ बातोॅ पर बोलोॅ तोहें
केकरोॅ खून नै खौली जैतियै,
एक वचन केॅ जोगै खातिर
मन-मन माहुर पीबी लेतियै।“

”हँसी लगै छै हमरा यै पर
जे हमरै में दोख दिखाबै,
जेकरोॅ मन में पाप समैलै
वै पुण्योॅ में पापे पाबै।“

”सुत-सारथी के नै इखनी
इखनी के ई पूछै वाला,
सच बोलै वक्ती ही सबके
मुँह पर लटकै बज्जड़ ताला।“

”जाबेॅ दौ, हे अन्तरयामी
आबेॅ की होतै बोली केॅ,
सब सीनै मंे राखी लेलियै
होबो करतै की खोली केॅ।“

”एकेक करी दूर करैलौ
कवच रहेॅ, कुण्डल, बैजयन्ती,
हम्मू आबेॅ ई जानै छी
पूरा नै होय वाला छै मिनती।“

”तहियो रण नै छोड़ेॅ पारौं
जे परिणाम हुएॅ, ऊ होतै,
के जानै-हाथ ऊँच्चोॅ केकरोॅ
के जानोॅ सें हाथे धोतै।“


मने-मन कही धनुष पर कर्णे
तुरत तीर केॅ तानी लेलकै,
सौ-सौ तीर उड़ै टुकनी रं
आकाशोॅ केॅ छानी देलकै।

नीचें ऐबोॅ सूर्य किरिन के
मुश्किल होलै कटियो टा भी,
लागै रात गिरी गेलोॅ छै
जबकि छेलै दुपहर आभी।

अंधकार में खाली गूंजै
धनुखोॅ के भारी टंकारे,
होय उठलोॅ छै कर्ण होनै केॅ
परशुराम जों धरी कुठारे।

हुन्नौं अर्जुन सजग वहेॅ रं
वाण, सौन रं बरसावै छै,
की धरती ही; सरंगो तक ठो
रही-रही केॅ थर्राबै छै।

हटी कृष्ण के संकेतोॅ सें
कुछुओ काज करै नै अर्जुन,
एक निशाना बस कर्णे ठो
ओकरै पर टिकलोॅ सौंसे मन।

कहै कृष्ण केना की करना
कखनी कर्णोॅ पर टूटै के,
कखनी होतै उचित समय ठो
वाण कर्ण पर बस छूटै के।

अर्जुन केॅ समझावै क्षण-क्षण
”कर्ण दिखेॅ संकट में जखनी,
जरो चूक नै करियोॅ तोहें
प्राण हरी लीयोॅ तों तखनी।“

”जरियो असमंजस नै करियोॅ
हमरोॅ बात गांठ में बान्होॅ,
करियौ जों संकेतो हम्में
वक्त यही छौं-जल्दी हानोॅ।“

बात खतम होलै कृष्णोॅ के
रण होय उठलै आरो भारी,
एक वाण सें कर्ण चलै छै
सौ-सौ सेना केॅ संहारी।

तभिये खूनोॅ के कीचड़ में
फसलै कर्णोॅ के रथ भारी,
हिलै नै चक्का, बढ़ै नै आगू
कर्ण उतरलै हारी-पारी।

जोर लगावै जत्तेॅ कर्णे
ओत्ते चक्का धंसै कीच में,
रथ केॅ तेज हंकैनें कृष्णो
आबी गेलै ऊ नगीच में।

आरो, अर्जुन दिश देखी केॅ
बोली उठलै, ”यही समय छौं,
अर्जुन तानोॅ तीर प्रखरतम
वैरी के निश्चय ही क्षय छौं।“

”जों जरियो टा चूकै छौ तेॅ
पलटी ऐतौं काल तोरै पर,
महाकाल ई कर्ण बुझोॅ तों
घुमतें, फिरतें जों धरती पर।“

”सोच-फिकिर नै करोॅ जरो टा
साधोॅ वाण कर्ण केॅ मारोॅ,
जे संहार बनी केॅ ठाड़ोॅ
ओकरा पहिलें तों संहारोॅ।“

कृष्णोॅ के ई बात सुनी केॅ
कर्ण ठठाय केॅ हाँसी पड़लै,
देखी केॅ-पुण्योॅ के सर पर
की रं पाप-अनीति चढ़लै।

फिनू कहलकै, ”अन्तरयामी,
ई अधर्म, ई पाप कथी लेॅ,
काज केन्हौं नै शोभौं तोरा
तोरोॅ हेनोॅ धर्मव्रती लेॅ।“

”सोचोॅ, मन में जरा विचारी
की तोरा ई शोभा दै छौं,
एक निहत्था पर बल ढेबोॅ
पाप छिकै, की सोच ई नै छौं।“

”नर के पाप-क्षमा के जोगेॅ
तोरोॅ पाप-तोहीं कुछ बोलोॅ
जों अधर्म कल धर्म बनी जाय
उजड़ी जेतै धर्म बसैलोॅ।“

”मत मुँह खोलोॅ कर्ण अभी तों
पाप-पुण्य हम्मू जानै छी,
धर्म-अधर्मोॅ रोॅ परिभाषो
जेकरा सें जग केॅ बान्है छी।“

”जखनी एक निहत्थे पर ही
तोरा सबनें धर्म दिखैलौ,
बोलोॅ, अगर कहेॅ पारै छोॅ
कोॅन पुण्य स्वर्गोॅ के पैलौ।“

बात सुनी केॅ मुस्की उठलै
फेनू कर्ण थिरय केॅ थोड़ोॅ,
आरो कहलकै, ”अन्तरयामी
खुलतौं बात बहुत्ते छोड़ोॅ।“

”सबकेॅ दोख की हमरे माथोॅ
कोय कुछ करेॅ तेॅ कर्णे दोखी,
खूब न्याय ई तोरोॅ सब के
पुण्य विचारौ सच केॅ रोकी।“

”के के कत्तेॅ धर्मी यैठां
कौनें कत्तेॅ पाप छुपैलेॅ
केकरौ सें कुछ छुपलोॅ नै छै
खाँसी रुकै नै मुँहे दबैलेॅ।“

”जों एतनै छै अर्जुन केॅ बल
तेॅ तोरोॅ ऊपर नै कूदौ,
देखौ पासा केना पलटै
एक क्षणोॅ के मोहलत तेॅ दौ।“

अतना कही बड़ी जोरोॅ सें
चक्का केॅ ऊपर लानै लेॅ,
तीन लोक के ताकत लेलेॅ
कुछ नै बचलै कुछ ठानै लेॅ।

मजकि कुछ हिललै नै डुललै
रथ रोॅ चक्का कहूँ जरा-सा,
आरो धसले ही ऊ गेलै
दलदल में कोय भारी भैंसा।


एक सथ चिकरी उठलै नी
दूर कहीं ठां श्वान-सियारो,
पेचोॅ के कटु बोली उठलै
हिन्नें काम करै नै जोरो।

”तानोॅ वाण, करी दौ छलनी
देखै छी की अर्जुन तोहें,
ई रं समय नै आबै वाला
घेरौं नै जरियो टा मोहें।“

कृष्ण के कहना भर छेलै
जागी उठलै तीरो तरकस,
गांडीव के टंकार गरजलै
रखले रहलै अपयश आ यश।

एक तीर कंठोॅ में धसलै
देहोॅ में ओकरा सें बेसी,
गिरलै कर्ण वहीं ठां मूर्छित
छोड़ी पीछू ढेंसा-ढेसी।

चुप्पी रण में फैली गेलै
शमशानोॅ के सन्नाटा रं,
कौरव-दल कॅे यहेॅ बुझाबै
थाप गाल पर झन्नाटा रं।

पाण्डव-दल उछलै मोदोॅ में
कृष्ण बड़ी मुरझैलोॅ हेनोॅ,
चेहरा होने मलिन लगै छै
आगिन जना पझैलोॅ हेनोॅ।

बड़ा दुखित रं बोली पड़लै
”अर्जुन कर्णोॅ के गिरला सें,
सचमुच लागै-पुण्य हाथ सें
छुटी गेलोॅ छै, ई करला सें।“

”कर्णोॅ रं नै पुण्य प्रतापी
वीरो कोय एकरोॅ रं नै छै,
के दानी कर्णोॅ रं बोलोॅ
प्रिय-बात पर प्राणो दै छै।“

”धर्म मिटेॅ नै-बस ई खातिर
अश्वसेन रं महकाल के,
बात सुनलकै कहाँ जरो टा
छोड़ी देलकै साथ व्याल के।“

”अर्जुन, हमरोॅ बातोॅ पर तेॅ
तोरोॅ संशय होतेॅ होतौं,
पच्छ लै छियै कर्णोॅ के ही
कौनें भाव तोरोॅ ई धोतौं?“

”हम्मी धोएॅ पारौं संशय
गांठ मनोॅ के खोलेॅ पारौं,
मन के संशय दूर हुवेॅ, से
रूप विप्र के हम्में धारौं।“

आरो ब्राह्मण रूप धरी केॅ
कृष्ण पहुँचलै कर्णोॅ के लुग,
जहाँ खड़ा पहिलें सें छेलै
भिंगलोॅ आंखी सें चारो युग।

खूनोॅ सें लथपथ कर्णे नें
देखी विप्र बगल में ठाढ़ोॅ,
पूछलकै, ”की बात देव छै?“
विजय भाव में खुब्बे गाढ़ोॅ।

सुनथैं प्राण हहरलै तहियो
विप्र भेष के कृष्ण कहलकै,
”हमरा चाही स्वर्ण-दंत ऊ
तोरोॅ दाँत बीच जे झलकै।“

”महादानी के तोरोॅ हेनोॅ!
पाण्डव भी नै जग-ई जानै;
जे ब्राह्मण के बात रखै लेॅ
चन्दन द्वार उखाड़ी लानै।“

ई सुनथैं कर्णोॅ ठोरोॅ पर
चुटकी भर मुस्कान उभरलै,
नै जानौं की बात सोची केॅ
विप्र भेष में कृष्ण हहरलै।

”एतने टा बातोॅ लेॅ हेनौ
दीन, दिखाबौ शोभा नै दै,
एकरा छोटे बात समझियोॅ
कर्ण अगर जों प्राणोॅ केॅ दै।“

ई बोली केहुनी के बल्लोॅ
उठलै बैठी गेलै झट सें,
पास नगीचे पड़लोॅ पत्थर
हाथोॅ में लै लेलकै पट सें।

बिना देखलेॅ आगू-पीछू
दान दीप्ति सें ऊ दमकी केॅ,
स्वर्ण-दंत ऊ तोड़ी लेलकै
बिजली के गति सें चमकी केॅ।

फेनू लै केॅ कर्ण कहलकै
”विप्र सुनोॅ, नै स्वर्ण छुताबै,
आरो कभी नै जुट्ठोॅ होय छै
लोके नै ई, वेद बताबै।“

”होनौ केॅ हमरा लुग होतियै
समय जरो टा ठहरै लेली,
अमृत यहीं उतारी लेतियै
हँसतै-हँसते, खेली-खेली।“

”आरो अमृत सें ही धोय केॅ
तोरा स्वर्ण-दंत ई देतियौं,
जीवन करतौं धन्य, पाँव केॅ
अमृत सें ही पखारी लेतियौं।“

”है जीवन की जीवन छेकै
जे दानोॅ सें दूर रहै छै,
हम्मी नै ई बात कहै छी
सौंसे अंगे देश कहै छै।“

”हमरोॅ ई देही के मांटी
हमरोॅ खूनो, हमरोॅ सांसा,
वहेॅ देश के मांटी, पानी
आरो हवा के चन्दनवासा।“

”जै माँटी नें सिखलैलेॅ छै
खाली दान, त्याग के बोली,
वहेॅ धर्म के माथा पर तांे
देलेॅ छौ चन्दन के रोली।“

”कौनें कहतै ई युद्धोॅ में
कर्ण धर्म सें हारी गेलै,
भोगौ पाण्डव-तुच्छ सिंहासन
जेकरा कर्णे बारी गेलै।“

एतरा बोली चुप भै गेलै
मूंगा के मूर्ति रं लागै
होलै-होलै विप्र करोॅ पर
कर्णे मांटी के तन त्यागै।

सहसा सूर्य उतरलै रण में
भारी किरिन बनी केॅ झब-झब
लै केॅ कर्णोॅ के प्राणोॅ केॅ
घुरलै ऊ आँखी सें डब-डब।

फैली गेलै घोर अंधेरा
ठीक प्रलय के राते नाँखी
खोता युद्धोॅ के लटकै छै
उड़ी गेलोॅ छै सोना पाँखी।