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नौ रस / मख़दूम मोहिउद्दीन
Kavita Kosh से
वो पहला गीत बहारों का वो अरमाँ चाँद सितारों का
जब्रील<ref>एक फ़रिश्ते का नाम</ref> -ए-अमीं के होटों के बेगाए हुए नग़मों की सदा ।
मासूम लड़कपन के रुख़ पर नौख़ेज़ जवानी का ग़ाज़ा<ref>लालिमा</ref> ।
हूरों के बहश्ती नग़मों<ref>स्वर्गिक गीत</ref> से जो राग बने वो राग है वो
जिससे कि कलीमी<ref>बात करने की शक्ति</ref> मिलती है कुछ ऐसी ही इक आग है वो ।
तारों की महफ़िल से आकर कलियों में सो जाने वाली
रोशन सूरज की किरनों के झुरमुट में खो जाने वाली ।
मैं तुझसे मुहब्बत करता हूँ ये कहने की हिम्मत न हो सकी
इज़हारे तमन्ना हो न सका इज़हार की ज़ुर्रत हो न सकी ।
आ शायर के मन में आजा
आ अपने नशेमन में आजा ।
शब्दार्थ
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