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नौ / रागिनी / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'

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कोकिले! मत, गीत गाओ
घाब ताजा है कहीं यह फट न जाए
दर्द से बेचैन हो न तड़फड़ाए
आज सोए से हृदय को मत जगाओ
दर्द का सागर उमड़ता आ रहा है
पूछता है कौन कुहु-कुहु गा रहा है
हर कड़ी में वेदना को मत बसाओ
जख्म दिल में है तुम्हारी तान बातर
चाँदनी-घन औ मदन के बाण बातर
कह रहा हूँ, दर्द को फिर मत जगाओ
याद पर हल्की परत जो बस रही है
घाव पर हल्की त्वचा जो रिस रही है
उस परत को तान से मत काँप-कंपाओ
तान मत छोड़ो की उड़ती साँस है
मैं पकड़ कैसे रखूँ यह खुला आकाश है
पाँव पड़ता हूँ, हमारी साँस को तुम मत बुलाओ
कोकिले! मत गीत गाओ