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न्यायपालिका / रंजीत वर्मा

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न्यायपालिका के मुखिया की पलकें भीग गईं
उसने रूमाल निकाला और
करीने से दोनों आँखें पोंछी
भर्राई आवाज़ में
एकिकनियम का गणित समझाया
लम्बित मामलों की संख्या
जजों की संख्या का अनुपात बताया
फिर फ़ैसले में लगने वाले
दिन महीने साल का हिसाब दिया
और थककर बैठ गया

वहाँ वह भी था
जो न्यायपालिका को
घुटनों के बल देखना चाहता था
उसने कहा
जब जागो तब सवेरा
दरअसल वह कहना चाहता था
अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे।