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न्याय और आज़ादी के लिए रुदन / त्सोलतिम न्गीमा शकबपा / अनिल जनविजय

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बहुत ज़्यादा रोने के बाद
अब मेरी आँखों में
आँसू नहीं बचे हैं
बर्फ़ के पहाड़ में दबकर
मेरा ख़ून जम चुका है
मेरा गोश्त काट दिया गया है
जगह-जगह से
पीड़ादायक अत्याचारों के तले
मेरी हड्डियों को कुचल दिया गया है
कम्युनिस्ट तन्त्र की दमनकारी तानाशाही
भुस्स भर रही है मेरे दिमाग में
विदेशी हंसों का यह हमला
हमारी तिब्बती नस्ल को ख़त्म कर रहा है।

लेकिन मेरे इस सन्तापित शरीर में
जागृत है मेरी आत्मा
वह चीख़ रही है न्याय के लिए
और लड़ रही है आज़ादी के लिए

अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल अँग्रेज़ी में पढ़िए
   CRY FOR JUSTICE AND FREEDOM

My tears are no more
From weeping too much
My blood is frozen
Under the icy reign
My flesh is torn
'Neath the scorching tyranny
My bones are crushed
By the oppressive autocracy
My brain is indoctrinated
In the churning communist machine
My race is vanishing
Invaded by alien Hans

Yet my spirit rises
Above my tormented body
To cry for justice
And fight for freedom

Copyright © Tsoltim N. Shakabpa - 2011