न्यारे-न्यारे भ्रम फेला कै जारी करते जो फरमान / मंगतराम शास्त्री

न्यारे-न्यारे भ्रम फेला कै जारी करते जो फरमान
वें करते मेहनत की चोरी सबतै माड़ा विधि विधान
 
कर्म की गेल्यां, धर्म जोड़ कै, श्रम का पाठ पढ़ाते जो
काम कर्म हो, कर्म धर्म हो, न्यूं जंजाल फैलाते जो
धर्म की गेल्यां घटै आस्था फेर विश्वास जमाते जो
दिखा पाप का भय माणस की बुद्धि को बिचळाते जो
चालाकी से स्याणे बणकै करैं स्याणपत बेईमान
 
धर्म कहै मत बदलो धन्धा पुस्तैनी जो काम करो
बांध देई जो चलती आवै मरयादा सुबह शाम करो
जात गोत की जकडऩ में मत परिवर्तन का नाम करो
चक्रव्यूह में फंसे रहो मत लिकड़ण का इन्तजाम करो
कोल्हु के बुळ्दां की ढालां रहो घूमते उम्र तमाम
 
बेशक मेहनत करणी चाहिए मेहनत ही रंग ल्यावै सै
मेहनत में जब कला मिलै तो सुन्दरता कहलावै सै
मेहनत की भट्ठी में तप स्योन्ना कुन्दन बण ज्यावै सै
लेकिन मेहनत की कीमत पै शोषक मौज उड़ावै सै
मेहनत का महिमा मण्डन हो फेर होगा श्रमिक सम्मान
 
जिस दिन काम करणिए जग में मिलकै नै हक मांगैंगे
मेहनतकश सब मरद लुगाई जब आपणी बांह टांगैंगे
उस दिन पकड़ी जागी चोरी फेर सब सीमा लांघैंगे
गेर गाळ में मूंदे मूंह जुल्मी चोरां नै छांगैगे
कहै मंगतराम मिलैगा असली मेहनत का फेर पूरा दाम

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