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न्यूयार्क में एक तितली / सिनान अन्तून

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बग़दाद के अपने बग़ीचे में
मैं अक्सर भागा करता था उसके पीछे
मगर वह उड़कर दूर चली जाती थी हमेश।

आज
तीन दशकों बाद
एक दूसरे महाद्वीप में
वह आकर बैठ गई मेरे कन्धे पर।

नीली
समन्दर के ख़यालों
या आख़िरी साँसें लेती किसी परी के आँसुओं की तर॥

उसके पर
स्वर्ग से गिरती दो पत्तियाँ।

आज क्यों?

क्या पता है उसे
कि अब मैं नहीं भागा करता
तितलियों के पीछे?

सिर्फ़ देखा करता हूँ उन्हें
ख़ामोशी से
कि बिता रहा हूँ ज़िन्दगी
एक टूटी हुई डाल की तरह।

(बग़दाद - 1990)

अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल