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न्यू पजर सूख कै होग्या / मेहर सिंह

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ये बात जब सत्यवान सुनता है तो क्या कहता है-

देही टूटी बोझ में मेरी आठ पहर की कार
न्यूं पंजर सूख कै होग्या।टेक

आखीर हमारी आ ली, काया रंज फिकर नै खाली
इस कंगाली में गोझ में रुपये रहे ना दो च्यार
न्यू पंजर सूख कै होग्या।

याद कर पाछले समय ने रोता
मैं अपणी जिन्दगानी नै खोता
लकड़ी ढ़ोता रोज मैं था गद्दी का हकदार
न्यूं पंजर सूख कै होग्या।

कद खुल ज्यांगे भाग इस नर के
मिट ज्यांगे छेक जिगर के
था सच्चे हर की खोज मैं मनै दीन्ही उमर गुजार
न्यूं पंजर सूख कै होग्या।

ये लेख लिखै बेह्माता
टुकड़ा बे अदबी का खाता
मेहर सिंह गाणा गाता मौज में दिन्हा तज हल भार
न्यूं पंजर सूख कै होग्या।