भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
न आवाज़ कोई, न इंतज़ार / प्रतिभा कटियार
Kavita Kosh से
न आवाज़ कोई, न इंतज़ार
वैसे, इतना बुरा भी नहीं
फ़ासलों के बीच
प्रेम को उगने देना
अनकहे को सुनना,
अनदिखे को देखना
फ़ासलों के बीच भटकना ।
आवाज़ों के मोल चुकाने की ताक़त
अब नहीं है मुझमें
न शब्दों के जंगल में भटकने की ।
न ताक़त है दूर जाने की
न पास आने की ।
बस एक आदत है
साँस लेने की और
तीन अक्षरों की त्रिवेणी
में रच-बस जाने की ।
तुम्हारे नाम के वे तीन अक्षर...