न इंतज़ार की लज़्ज़त , न आरज़ू की थकन / फ़राज़
न इंतज़ार <ref>प्रतीक्षा</ref> की लज़्ज़त<ref>स्वाद</ref> न आरज़ू <ref>मनोकामना</ref> की थकन
बुझी हैं दर्द की शम्एँ कि सो गया है बदन
सुलग रही हैं न जाने किस आँच से आँखें
न आँसुओं की तलब <ref>चाह</ref> है न रतजगों<ref>रात भर जागने</ref> की जलन
दिले-फ़रेबज़दा!<ref>धोखा खाए हुए दिल</ref> दावते-नज़र<ref>दृष्टि के निमन्त्रण</ref> प’ न जा
ये आज के क़दो-गेसू <ref>क़द और बाल</ref> हैं कल के दारो-रसन<ref>सूली और रस्सी</ref>
ग़रीबे-शहर<ref>मुसाफ़िर , जो शहर में किसी को न जानता हो</ref> किसी साय-ए-शजर<ref>वृक्ष की छाया में</ref> में न बैठ
कि अपनी छाँव में ख़ुद जल रहे हैं सर्वो-समन<ref>पेड़ तथा फूल</ref>
बहारे-क़ुर्ब<ref>सामीप्य की बहार</ref> से पहले उजाड़ देती हैं
जुदाइयों की हवाएँ महब्बतों के चमन
वो एक रात गुज़र भी गई मगर अब तक
विसाले-यार <ref>प्रेमी प्रेमिका का मिलन</ref> की लज़्ज़त <ref>आस्वाद</ref> से टूटता है बदन
फिर आज शब<ref>रात</ref> तिरे क़दमों की चाप के हमराह
सुनाई दी है दिले-नामुराद<ref>भागे दिल</ref> की धड़कन
ये ज़ुल्म<ref>अत्याचार</ref> देख कि तू जाने-शाइरी<ref>कविता के प्राण</ref> है मगर
मिरी ग़ज़ल पे तिरा नाम भी है जुर्मे-सुख़न<ref>बात करने का अपराध</ref>
अमीरे-शहर<ref>शहर का शासक</ref> ग़रीबों को लूट लेता है
कभी ब-हीला-ए-मज़हब<ref>धर्म के नाम पर</ref> कभी ब-नामे-वतन<ref>स्वदेश के नाम से</ref>
हवा-ए-दहर<ref>काल(समय की हवा)</ref> से दिल का चराग़ क्या बुझता
मगर ‘फ़राज़’ सलामत<ref>सुरक्षित</ref> है यार का दामन