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न क़िस्त क़िस्त में यूँ दाँव पर लगा मुझको / तलअत इरफ़ानी

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न क़िस्त क़िस्त में यूँ दाँव पर लगा मुझको
मैं तुझको हार चुका हूँ तू हार जा मुझको

सुलग रहा हूँ अज़ल से यूं ही ज़माने में
है तेरे पास कोई अश्क तो बुझा मुझको

अजीब रंग थे उसकी ज़हीन आंखों में
वो इक नज़र में कई बार पड़ गया मुझको

मेरे वुजूद के लाखों सुबूत थे लेकिन
कोई दिमाग़ भी साबित न कर सका मुझको

न पूछ यास का आलम की तेरी दुनिया में
तेरा ख्याल भी जिंदा न रख सका मुझको

न आँख आँख रही है न दिल ही दिल तलअत
किसी के अह्द ने पत्थर बना दिया मुझको