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न किया जिसने भजन राम का वो नर कैसा / बिन्दु जी
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न किया जिसने भजन राम का, वो नर कैसा।
बसा न जिसमें सुघर श्याम तो वो घर कैसा॥
जो व्यर्थ नाच-तमाशों में जो खोता रहा।
न लुटा संतों के सत्कार में वो जर कैसा॥
वे मग के लोग तो खुश होके वाह-वाह कर दें।
मगर न खुश हों जगतनाथ तो वो हुनर कैसा॥
गरज वास्ते लाखों के दर पे झुकता रहे।
न दीन बन्धु के दर पर झुके वो नर कैसा॥
असर हजार दिलों में ये अश्रु ‘बिन्दु’ करे।
न हो दयाल के दिल पर असर तो वो असर कैसा॥