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न केकरो चइत, न केकरो फाग / सतीश मिश्रा

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ओतबर गो के आसमान में कुल्लम चार महिन्ना ठहरे
एतनी गो गो आँख में बदरी कन्ने ठहरत, कै दिन ठहरत?
राही रे मत हार!
हार के फूल बनेला बैजन्ती के कोख भरत अब तुरते
तोर करत सिंगार
आरती के थरिआ में चान, तरेगन, सुरुज बरत अब तुरते
पुरुब में पौ फटे लगल हे
शंख ओठ से सटे लगल हे
पाँचजन्य के तुमुल नाद भिर कउन हैंकड़ी कब ले हँकड़त?
एतनी गो गो आँख में बदरी कन्ने ठहरत, कै दिन ठहरत?
कट गेल पीअर धान
मान के अप्पन एक अलान खड़ा हल जेकरा पकड़ खेसारी
जइसे होते सेनुरदान
धोआ गेल दुलहनियाँ के मांग से नैकी टुहटुह लाल रेघारी
हाय रे, अइसन बज्जरपात!
बाह रे! कर बज्जर के मात
खेसारी सोहर-पसर फिर गेल, बिहानों पसरत, सब दिन पसरत
एतनी गो गो आँख में बदरी कन्ने ठहरत, कै दिन ठहरत?
चल मोसाफिर, चल!
चले के नाम जिन्दगी मीत! मौत हे रुकना आउ ठहरना
अस्ताचल में ढल
मगर दुपहरिआ में तूँ सीख जगत ला दहक-दहक के जरना
न केकरो चइत, न केकरो फाग
हे दुन्नो समय-समय के राग
काग बन, कभी आम पर, कभी नीम पर दू दिन उचरल, दू दिन उचरत
एतनी गो गो आँख में बदरी कन्ने ठहरत, कै दिन ठहरत?