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न कोई ख़्वाब न ताबीर ऐ मेरे मालिक / फ़राज़
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न कोई ख़्वाब न ताबीर ऐ मेरे मालिक
मुझे बता मेरी तक़सीर ऐ मेरे मालिक
न वक़्त है मेरे बस में न दिल पे क़ाबू है
है कौन किसका इनागीर1 ऐ मेरे मालिक
उदासियों का है मौसम तमाम बस्ती पर
बस एक मैं नहीं दिलगीर2 ऐ मेरे मालिक
सभी असीर हैं फिर भी अगरचे देखने हैं
है कोई तौक़3 न ज़ंजीर ऐ मेरे मालिक
सो बार बार उजड़ने से ये हुआ है कि अब
रही न हसरत-ए-तामीर ऐ मेरे मालिक
मुझे बता तो सही मेहरो-माह किसके हैं
ज़मीं तो है मेरी जागीर ऐ मेरे मालिक
‘फ़राज़’ तुझसे है ख़ुश और न तू ‘फ़राज़’ से है
सो बात हो गई गंभीर ऐ मेरे मालिक
1. लगाम थामने वाला 2. ग़मगीन 3. गले में डाली जाने वाली कड़ी